India में semiconductor उत्पादन: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 1.25 लाख करोड़ रुपये की तीन semiconductor परियोजनाओं का उद्घाटन किया है। गुजरात और असम में इनका निर्माण होगा।
Indian semiconductor: भारत semiconductor की ओर तेजी से बढ़ रहा है। गुजरात के साणंद और धोलेरा में बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 1.25 लाख करोड़ रुपये की तीन semiconductor परियोजनाओं का उद्घाटन किया जाएगा। असम के मोरीगांव में भी एक प्लांट खोला जाएगा। भारत अभी भी सेमीकंडक्टर के रूप में दूसरे देशों पर निर्भर था। भारत सेमीकंडक्टर के आयात पर हर साल अरबों रुपये खर्च करता है। हम पूरी तरह से समझते हैं कि भारत को semiconductor क्यों चाहिए और यहां प्लांट लगाने से देश को क्या लाभ होगा।
Semiconductor क्या हैं?
semiconductor को सिलिकॉन चिप के नाम से भी जाना जाता है। किसी भी इलेक्ट्रोनिक उत्पादक में यह आवश्यक है। इसके बिना कोई भी इलेक्ट्रोनिक उत्पाद बनाया नहीं जा सकता। एलईडी बल्बों, कारों, मिसाइलों और मोबाइलों में इसका इस्तेमाल होता है। यह चिप के इलेक्ट्रोनिक भाग की मेमोरी को नियंत्रित करता है। स्मार्टवॉच, मोबाइल, टीवी, लैपटॉप, ड्रोन, परिवहन और ऑटोमोबाइल क्षेत्र में सेमी कंडक्टर का इस्तेमाल होता है।
Semiconductor बनाना इतना चुनौतीपूर्ण क्यों है?
semiconductor बनाना बहुत जटिल है। एक छोटे से सेमीकंडक्टर या चिप बनाने के लिए 400-500 चरण आवश्यक हैं। इनमें से एक भी चरण गलत होने पर कुछ ही देशों के पास करोड़ों रुपये हैं। वहीं कुछ देशों के पास इसकी डिजाइनिंग तकनीक है। पैलेडियम, सेमीकंडक्टर माइक्रोचिप्स बनाने में उपयोग की जाने वाली धातु का सबसे बड़ा सप्लायर रुस है। भारत की बात करें तो विश्व की सबसे बड़ी आईटी और चिप निर्माता कंपनियों में भारतीय इंजीनियर काम करते हैं। इन कंपनियों के लिए यह इंजीनियर चिप बनाते हैं।
विभिन्न कंपनियों ने अपने-अपने तरीके से कई तकनीकों का पेटेंट कराया है, जो semiconductor बनाने में भी एक चुनौती है। यह कंपनियां दूसरी कंपनियों से चिप बनाती हैं। चिप निर्माण क्षेत्र में तीन प्रकार की कंपनियां हैं। कुछ कंपनियां चिप बनाती हैं। कुछ कंपनियां रिसर्च और डिजाइन करती हैं और कुछ चिप बनाने के लिए आवश्यक मशीन और सामान प्रदान करती हैं।
फैब्स कंपनियों में चिप बनाते हैं। भारत में पहले से ही रिसर्च और डिजाइन से जुड़ी कंपनियां हैं। भारत अब उत्पादन कंपनियों पर जोर दे रहा है। पूरी चिप सप्लाई चेन के रेवेन्यू में पचास प्रतिशत डिजाइनिंग, असेंबलिंग, टेस्टिंग, पैकेजिंग और मार्किंग शामिल हैं। इसलिए भारत इस क्षेत्र पर केंद्रित है।
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क्या semiconductor का व्यवसाय इतना बड़ा है?
भारत में semiconductor की मांग लगभग 24 बिलियन रुपये है। 2025 तक मांग 100 बिलियन डॉलर हो जाएगी। 2030 तक इस आंकड़े का मूल्य 110 अरब डॉलर हो जाएगा। फिलहाल भारत आयातित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर निर्भर है। देश में इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात पेट्रोल और सोना के बाद सबसे अधिक होता है।
साथ ही, इनमें semiconductor लगभग 27% आयात करते हैं। इसी से विश्वव्यापी चिप कारोबार का आकलन किया जा सकता है भारत 2025 तक इस मिशन पर 10 बिलियन डॉलर खर्च करेगा। वहीं अगले दो वर्षों में चीन लगभग 1.4 ट्रिलियन डॉलर और अमेरिका 208 बिलियन डॉलर का निवेश करेगा।
दुनिया में semiconductor का सबसे बड़ा सप्लायर कौन है?
अमेरिका, ताइवान और चीन दुनिया में सबसे बड़े semiconductor सप्लायर हैं। South Korea भी इस दिशा में तेजी से प्रगति करने की कोशिश कर रहा है। इनमें सेमीकंडक्टर और प्रोसेसर चिप का सबसे बड़ा निर्यातक चीन है। भारत समेत पूरी दुनिया ने कोरोनावायरस महामारी के दौरान चीन में चिप उत्पादन को रोका। अमेरिका ने हुआवे जैसी चीनी कंपनियों को अमेरिकी सेमीकंडक्टर की सप्लाई रोकी थी।
भारत में कोरोना वायरस महामारी के दौरान ऑटो मोबाइल उद्योग में सेमीकंडक्टर की कमी के कारण उत्पादन धीमा होने के बाद यह क्षेत्र शुरू हुआ। भारत-अमेरिका 5वें कमर्शियल डायलॉग 2023 के दौरान, दोनों देशों ने सेमीकंडक्टर सप्लाई चैन बनाने के लिए एक एमओयू पर साइन किया। भारत में semiconductor बनाने के लिए विश्व भर की चिप निर्माता कंपनियों ने बातचीत शुरू की। इन कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए भी इंसेटिंव मिल रहा है। भारत ने अभी 10 अरब डॉलर की इंसेंटिसें व देने का घोषणा किया है।
सीजी पावर एंड इंडस्ट्रियल सॉल्यूशंस लिमिटेड (CG Power) अपना सेमीकंडक्टर प्लांट गुजरात के साणंद में शुरू करेगी। 2024 के अंत तक सेमीकंडक्टर बनाए जाएंगे। इस परियोजना पर 7500 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। वहीं धोरेला semiconductor का फैब्रिकेशन प्लांट टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड (TEPL) खोलेगा। इस परियोजना को दिसंबर 2026 तक पूरा करने के लिए 91,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसके अलावा, 27,000 करोड़ रुपये का एक संयंत्र असम के मोरीगांव में बनाया जा रहा है।